बुधवार, 1 अगस्त 2018

जुहू का समंदर किनारा और मै

जब मेरी मास्टर्स कि degree चल राही थी, उस समय मुझे होस्टेल मै बहुत सहेलीया मिली | सब लोग भारत के अलग अलग राज्य से आई हु थी| हम सब लोग घर से दूर थी| थो हम सब ऐक दुसरे के साथ परिवार जैसे रह राहे थे | वो लोगोन के साथ घर से दूर और ऐक मुझे दोस्त मिला जो कहता कूच नाही था, पर अपने स्वभाव से बहुत कूच सिखा जाता था वो था जुहू का समंदर किनारा | मान्न्शांती और थोडी देर आराम से दुनिया कि बाते भुलकर बैटने  का एकमेव स्थान मतलब  जुहू| दिल मै अलग अलग विचारोन का तुफान  हो तब  उसके  पाणी कि तरफ देखते समय वो तुफान  थम जाता था | वो कह जाता था कि जिंदगी बडी प्यारी है उसको  जी भरकर जीलो | और जिंदगी जिते समय कूछ निर्माण करो | वो भी अपनी लहरो के साथ लाखो चित्रे निर्माण  कर जाता था |  उसकी तरफ घंटो तक उसकी तरफ देखते खडे रहे तब भी ऐसा लगता था कि यह पल कभी खत्म ना हो | 
उसका तरफ देखते समय जो बहुत दिनो से ऐक सवाल था उसका जवाब मिला था |. निसर्ग यही मेरा उस समय से असली   गुरु है | क्युंकी  मनुष्य ऐक ऐसा प्राणी है जो जात - पात धर्म -पंथ वर्ण इन सबके आधार पर उच-नीच करता है|  पर येः समंदर अपनी लहरोन मै सबकी ऐक जैसा खेलने का अवसर देता है |किनारे पर  बैटने वाला कौन है ? यह वो देखता नाही. वो सिर्फ अपना सौन्दर्य सबको समान तरीके से दिखता है , उसका  सौन्दर्य देखकर सब ऐक जैसा ही आनंदित हो जाते है गरिबो के लिये वो ऐक  उदरनिर्वाह का  स्थान और नोकर वर्ग के लिये आराम का   स्थान ऐसा है वो| जब जो  निसर्ग उच - नीच  नाही करता तो हम क्यू करते है उच नीच ? उससे तो हम महान नहि  हो सकते ना | ऐसे सवाल का जवाब  उसने दिया |
ऐसा था मेरा साथी, दोस्त और गुरु  गुरु जुहूचा किनारा.  







12 टिप्‍पणियां:

  1. 1 दम छान लिहतेस पण आमचे msg वाचत जा ना

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